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रास का अभिप्राय है आत्मा और परमात्मा का मिलन न की शारीरिक मिलन -पूज्य दीपक कृष्ण जी

भगवान की प्राप्ति अबोध बालक की तरह निस्वार्थ प्रेम से ही संभव

  • *रास का अभिप्राय है आत्मा और परमात्मा का मिलन न की शारीरिक मिलन*

*भगवान की प्राप्ति अबोध बालक की तरह निस्वार्थ प्रेम से ही संभव *

*खरसिया*

खरसिया के ग्राम घघरा में आयोजित संगीतमय विशाल श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन कथा व्यास पूज्य दीपक कृष्ण जी महाराज श्री के द्वारा आज की कथा में प्रभु की बाल लीलाओं को बड़े ही सुन्दर ढंग से श्रवण कराने के बाद आज कृष्ण – रुक्मणी विवाहोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया।
कल की कथा प्रसंग को प्रारम्भ करते हुए पूज्य महाराज श्री ने कहा की हर मानव अपने जीवन में सफल होना चाहता है, आगे बढ़ना चाहता है। ये गलत नहीं है बल्कि दूसरों को नीचा दिखाकर आगे बढ़ना , दूसरों को समाप्त करके आगे बढ़ना , दूसरों का नुकसान करके आगे बढ़ना ये गलत है। अगर मानव को जीवन में आगे बढ़ना है तो हमें अपने विचारों को सकारात्मक और भक्तिमय बनाना होगा। जीव को भगवान से प्यार इस प्रकार करना चाहिए जैसे एक अबोध बालक अपनी माँ से प्यार करता है जब तक हम अबोध बनकर भगवान से प्रेम नहीं करेंगे तब तक हम भगवत प्राप्ति नहीं कर सकते जिस प्रकार एक अबोध बालक का अपनी माँ के प्रति प्रेम निःस्वार्थ होता है उसी तरह हमारा प्रेम भी निःस्वार्थ होना चाहिए।

अपनी किसी भी वस्तु पर अभिमान करने से पहले हमें यह सोच लेना चाहिए कि भगवान अभिमान वाली वस्तु को हम से दूर कर देते हैं। जैसे कि उद्धव जी को अपनी विद्धवता पर बड़ा ही अभिमान था तब भगवान ने उन को ब्रज में भेजा और जब उद्धव जी मथुरा से चले तो वृन्दावन निकट आया वहीँ से प्रेम ने अपना अनोखा रंग दिखलाया। लिपट कर वस्त्र में कांटे लगे उद्धव को समझाने तुम्हारा ज्ञान पर्दा फाड़ दें हम प्रेम दीवाने। उद्धव जी जब ब्रज पहुँचे तो ब्रज गोपीयों ने प्रेम परिभाषा देते हुए उनकी विद्धवता के अभिमान को प्रेम रूपी चादर से ढक दिया तब उद्धव जी ने ब्रज गोपीयों से कहा कि मेरा ज्ञान आपके कृष्ण प्रेम के आगे शून्य है।इस प्रकार भगवान ने उनके ज्ञान रूपी अभिमान को चूर-चूर किया।

आज महाराज श्री ने प्रभु के महारास प्रसंग को प्रारंभ करते हुए कहा की आज की युवा पीढ़ी कहती है कि हमारे प्रभु भी रास करते थे तो हमारे रास रचाने में क्या बुराई है। अरे कलयुग के नौजवानों क्या तुम यह नहीं जानते की प्रभु ने रास में कामदेव को हराया था लेकिन तुम्हारे रास में कामदेव की जीत होती है,वासना हावी होती है लेकिन भगवान का रास वासना मुक्त होता है। प्रभु के रास पर संदेह करने से पहले हमें रास को समझना होगा। रास का अभिप्राय है आत्मा और परमात्मा का मिलन न की शारीरिक मिलन। भगवान की लीलाओं को समझने के लिए पहले हमें भगवान को समझना होगा। प्रभु ने कामदेव के अभिमान को तोड़ने के लिए रास रचाया था।

आज कृष्ण-रुक्मणि विवाहोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। कथा के मुख्य यजमान भुनेश्वर (विक्की) राठौर जी ने सह-पत्नी कन्यादान की रश्म पूरी की और महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। कल सुदामा चरित्र की कथा के साथ ही कथा का विश्राम दिवस हैं,,

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